The story of Dhirubhai Ambani becoming a millionaire is very interesting, at the age of 17, he worked in a petrol tank and sometimes sold Bhajiya to pilgrims.
The story of Dhirubhai Ambani becoming a millionaire is very interesting : किसी भी सफल इंसान की कहानी बड़ी ही दिलचस्प होती हैं ,क्यूँकि बड़ी सफलता हासिल करने के से पहले उनकी एक अलग ही दुनियां होती हैं, इसलिए आज हम धीरूभाई अंबानी Dhirubhai Ambani के सफर के बारे में जानेंगे जिसमे 17 साल की उम्र में पेट्रोल टंकी में काम करना ,तीर्थ यात्रियों को भजिया बेचने के बाद करोड़पति बनने तक की बड़ी ही दिलचस्प कहानी हैं.
धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने आज ही के दिन ब्रीच कैंडी अस्पताल में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, यह बचपन में भजिया बेचकर अपना छोटा सा व्यापर चालू किया ,तब इनकी उम्र बेहद कम थीं,क्यूंकि इनके परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी,इनका परिवार मध्यवर्गीय था.
मिली जानकारी के अनुसार आज ही का वह मनहूस दिन था जब मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में बेचैनी का माहौल था, और सब इनके ठीक होने की दुआ मांग रहे थे, क्यूँकि देश का सबसे बड़ा नामी बिजनेस टाइकून अस्पताल के बेड पर अपनी अंतिम सांसे ले रहे थे जिसने चलते अस्पताल में भी खामोसी छा गयीं थी.Dhirubhai Ambani
24 जून 2002 को धीरूभाई अंबानी को अस्पताल मेंले जाया गया था, ताकि उनकी जान बचाई जा सके लेकिन कहते हैं न जीवन और मरण दोनी ही उपर वाले के हाथ में होता हैं इसमें हम सब कुछ नहीं कर सकते हैं,उन्हें Brainstroke आया था,इसके पहले भी 1986 में इनको यह दौरा आया था जिसकी वजह से इनके दाहिने हाथ को लकवा मार गया था,जिसके कारण इनको बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा धीरे धीरे इनका पूरा शरीर काम करना बंद कर रहा था,!आखिरकार डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दिया था.Dhirubhai Ambani
और 6 जुलाई को धीरूभाई नेअपनी आखिरी सांसे ली, धीरूभाई अंबानी से जुड़ी कई रोचक और दिलचस्प स्टोरीज हैं जो आपको प्रेरित करतीं हैं,ऐसा ही एक किस्सा उनके मायानगरी में पहला कदम रखने से जुड़ा है जो काफी दिलचस्प हैं ,वह उस ज़माने में केवल 500 रुपये लेकर ही मुंबई निकले थे,इसके बाद तो उन्होंने बिजनेस की दूनिया का राज पाठ ही संभाल लिया और व्यापर जगत के बादशाह बन गए.Dhirubhai Ambani
जानकारी के अनुसार धीरूभाई का पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी था ,जो उनके माँ पिता ने बड़ी ही शौक से रखा था इनका जन्म 28 दिसंबर 1932 को सौराष्ट्र के जूनागढ़ में हुआ था उनकी माता घर के काम काज करती थी,और पिताजी विद्यालय में ,शिक्षक थे ,उनके घर में पैसे की बहुत तंगी थीं , जिसकी वजह से धीरूभाई को छोटे मोटे काम कर खर्चा निकलना पड़ा था.Dhirubhai Ambani
जब बच्चा अपने बचपन को जी रहा होता हैं तब इन्होने कारोबार चालू कर लिया था, उन समय काफी लोग गिरनार पहाड़ी पर तीर्थ करने के लिए वहाँ आते थे,इन तीर्थयात्रियों को धीरूभाई भाजिया बेचा करते थे, इनकी पढ़ाई की बात करे तो इन्होने केवल 10वीं तकही पढ़ाई की हैं,क्यूंकि इनका ज्यादा समय तो कारोबार में हीचला जाता था.Dhirubhai Ambani
इनकी उम्र अनुमानितः 16 साल की ही रही होगी, जब कुछ पैसे कमाने के उद्देश्य से यह अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन गए थे,यह घटना 1949 की है। जहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर नौकरी करनी थी। अगर सैलरी की बात करें तो 300 रुपये 1 महीने का मिलता,धीरूभाई के काम करने के तरीके से कंपनी के सभी लोग और मालिक बेहद खुश थे, इस कारण वश उनका प्रमोसम कर दिया गया जिसमे उन्हें फिलिंग स्टेशन मैनेजर बना दिया गया था.
लम्बे वक्त तक काम करने के बाद वह 1954 मेंफिर भारत वापस आए उन्हें अंदाजा हो गया था की जो मैं चाहता हूँ हो उसे पूरा करने के लिए घर से बाहर निकलना बेहद जरुरी हैं तभी मैं अपने सपने को साकार कर पायूँगाजिसके कारण मायानगरी मुंबई में लिए रवाना हो गए, उनकी जेब में मात्र 500 रुपये ही थे, जिसको लेकर वह अपने सपने की उड़ान भरने निकल पड़े थे. Dhirubhai Ambani
समझ लिया था की कामयाबी कैसे मिलती हैं
मुंबई पहुंचकर उन्होंने तरह-तरह के धंधे आजमाने शुरू कर दिए ताकि किसी में तो सफलता हासिल हो जाये, उन्हें बाजार के बारे में काफी अच्छी पकड़ थी, Dhirubhai realized that there is a huge demand for polyester in India। इसके विपरीत विदेशों में भारतीय मसाले। इसने उन्हें एक बड़ा आदमी बनने को प्रेरित किया जो उनके दिलो दिमाग पर घर कर गयी, जिसके बाद वे अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ मिलकर 1960 में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन की स्थापना की,,जो आज के समय में आसमान छू रही हैं.Dhirubhai Ambani
इसने विदेशों में भारतीय मसाले और घर में विदेशी पॉलिएस्टर बेचना शुरू किया था ,धीरूभाई का1ऑफिस एक छोटे से मामूली कमरे में था,जो मुंबई के मस्जिद बंदर इलाके में नरसिनाथन स्ट्रीट के पास था जहाँ बहुत से लोग जाना भी पसंद नहीं करते थे, उतनी छोटी सी जगह में काम करने में काफी दिक्क्त होता था यह 350 स्क्वायर फीट का घर था,कमरे में दो टेबल, तीन कुर्सियों और एक फोन के अलावा कुछ नहीं था.Dhirubhai Ambani
The name of the company has been changed several times धीरूभाई अंबानी ने केवल 50,000 रुपये और 2 कर्मचारी के साथ कारोबार शुरू किया देखते ही देखते 2000 में वह देश के सबसे अमीर आदमी बन गए,जिसकी तरह सब मुकाम साहिल करना चाहते हैं,इससे पहले रिलायंस का प्रथम नाम बदलकर रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन कर दिया गया था। फिर दोबारा इसका नाम बदलकर रिलायंस टेक्सटाइल प्राइवेट लिमिटेड कर दिया गया। लास्ट में कंपनी का नाम बदलकर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) कर दिया गया।धीरूभाई अंबानी अपने परिवार के साथ पलों को बिताना ज्यादा रहना पसंद करते थे। साथ ही बाहरी चाकचौंध से दूर रहना भी पसंद करते थे.Dhirubhai Ambani
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Hands extended to help superheroes in bad days धीरूभाई अंबानी अच्छे कारोबारी के साथ साथ एक महान व्यक्ति भी थे,इस बात का खुलासा बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने किया, बात उन दिनों की है जब वह बेहद बुरे दौर से गुजर रहे थे। आर्थिक तंगी उन्हें घेरे हुए थीं बैंक खाता भी खाली था। धीरूभाई को जैसे ही मामले का पता चला तो उन्होंने मदद के लिए तुरंत हाथ बढ़ाया,ऐसा खुद अमिताभ बच्चन ने कहा है,उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज के 40वें स्थापना दिवस पर पूरे घटनाक्रम का वर्णन किया।
इस घटना का वर्णन करते हुए अमिताभ बच्चन की आंखे भी नम हो गयी थीं महनायक ने कहा कि एक समय वह दिवालिया हो गए थे,उनका कोई सहारा नहीं था,उनकी कंपनी घाटे में चली गई थीं ,आय के सभी स्रोत काट दिए गएथे । तब इसके बाद धीरूभाई ने अपने सबसे छोटे बेटे अनिल अंबानी को उनके पास भेजा फिर उनकी समस्या का समाधान हुआ.Dhirubhai Ambani
बॉलीवुड के महनायक ने धीरूभाई की तारीफ
Amitabh said कि अनिल अंबानी उनके सबसे घनिष्ट मित्र हैं, ,इन्होने मेरी मदद ऐसे बुरे वक्त में की थी जब मरता कोई सहारा नहीं बचा था , मेरे लिए ये ये उस मिशाल को सच कर के दिखाया की डूबते हुए को तिनके का सहारा और मेरे लिए ये वही तिनका बने जो मुझे सहारा दे गए और अपने भाई को मेरी मदद के लिए भेजा साथ ही पैसे भी दिलाये ,मदद की राशि इतनी थी कि अमिताभ बच्चन की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी, यह और बात है कि अमिताभ ने विनम्रता से इस पैसे को लेने से मना कर दिया। लेकिन वह इस उदारता से प्रेरित थे और आज भी उनका शुक्रियादा करते हैं.
बड़ी दिलचस्प है धीरूभाई अंबानी के करोड़पति, बनने की कहानी, 17 साल की उम्र में पेट्रोल टंकी में किया काम तो कभी तीर्थ यात्रियों को बेजी भजिया. किसी भी सफल इंसान की कहानी बड़ी ही दिलचस्प होती हैं ,क्यूँकि बड़ी सफलता हासिल करने के से पहले उनकी एक अलग ही दुनियां होती हैं, इसलिए आज हम धीरूभाई अंबानी के सफर के बारे में जानेंगे जिसमे 17 साल की उम्र में पेट्रोल टंकी में काम करना ,तीर्थ यात्रियों को भजिया बेचने के बाद करोड़पति बनने तक की बड़ी ही दिलचस्प कहानी हैं.Dhirubhai Ambani
धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने आज ही के दिन ब्रीच कैंडी अस्पताल में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, यह बचपन में भजिया बेचकर अपना छोटा सा व्यापर चालू किया ,तब इनकी उम्र बेहद कम थीं,क्यूंकि इनके परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी,इनका परिवार मध्यवर्गीय था,
मिली जानकारी के अनुसार आज ही का वह मनहूस दिन था जब मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में बेचैनी का माहौल था, और सब इनके ठीक होने की दुआ मांग रहे थे, क्यूँकि देश का सबसे बड़ा नामी बिजनेस टाइकून अस्पताल के बेड पर अपनी अंतिम सांसे ले रहे थे जिसने चलते अस्पताल में भी खामोसी छा गयीं थी।
इनकी उम्र अनुमानितः 16 साल की ही रही होगी, जब कुछ पैसे कमाने केउद्देश्य से यह अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन गए थे,यह घटना 1949 की है। जहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर नौकरी करनी थी। अगर सैलरी की बात करें तो 300 रुपये 1 महीने का मिलता,धीरूभाई के काम करने के तरीके से कंपनी के सभी लोग और मालिक बेहद खुश थे, इस कारण वश उनका प्रमोसम कर दिया गया जिसमे उन्हें फिलिंग स्टेशन मैनेजर बना दिया गया था.
लम्बे वक्त तक काम करने के बाद वह 1954 मेंफिर भारत वापस आए उन्हें अंदाजा हो गया था की जो मैं चाहता हूँ हो उसे पूरा करने के लिए घर से बाहर निकलना बेहद जरुरी हैं तभी मैं अपने सपने को साकार कर पायूँगाजिसके कारण मायानगरी मुंबई में लिए रवाना हो गए, उनकी जेब में मात्र 500 रुपये ही थे, जिसको लेकर वह अपने सपने की उड़ान भरने निकल पड़े थे .
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समझ लिया था की कामयाबी कैसे मिलती हैं
मुंबई पहुंचकर उन्होंने तरह-तरह के धंधे आजमाने शुरू कर दिए ताकि किसी में तो सफलता हासिल हो जाये, उन्हें बाजार के बारे में काफी अच्छी पकड़ थी, Dhirubhai realized that there is a huge demand for polyester in India। इसके विपरीत विदेशों में भारतीय मसाले। इसने उन्हें एक बड़ा आदमी बनने को प्रेरित किया जो उनके दिलो दिमाग पर घर कर गयी, जिसके बाद वे अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ मिलकर 1960 में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन की स्थापना की,,जो आज के समय में आसमान छू रही हैं,.
इसने विदेशों में भारतीय मसाले और घर में विदेशी पॉलिएस्टर बेचना शुरू किया था ,धीरूभाई का 1 ऑफिस एक छोटे से मामूली कमरे में था,जो मुंबई के मस्जिद बंदर इलाके में नर सिनाथन स्ट्रीट के पास था जहाँ बहुत से लोग जाना भी पसंद नहीं करते थे, उतनी छोटी सी जगह में काम करने में काफी दिक्क्त होता था यह 350 स्क्वायर फीट का घर था,कमरे में दो टेबल, तीन कुर्सियों और एक फोन के अलावा कुछ नहीं था ,
The name of the company has been changed several times धीरूभाई अंबानी ने केवल 50,000 रुपये और 2 कर्मचारी के साथ कारोबार शुरू किया देखते ही देखते 2000 में वह देश के सबसे अमीर आदमी बन गए,जिसकी तरह सब मुकाम साहिल करना चाहते हैं,इससे पहले रिलायंस का प्रथम नाम बदलकर रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन कर दिया गया था। फिर दोबारा इसका नाम बदलकर रिलायंस टेक्सटाइल प्राइवेट लिमिटेड कर दिया गया। लास्ट में कंपनी का नाम बदलकर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) कर दिया गया।धीरूभाई अंबानी अपने परिवार के साथ पलों को बिताना ज्यादा रहना पसंद करते थे। साथ ही बाहरी चाकचौंध से दूर रहना भी पसंद करते थे
Hands extended to help superheroes in bad days धीरूभाई अंबानी अच्छे कारोबारी के साथ साथ एक महान व्यक्ति भी थे,इस बात का खुलासा बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने किया, बात उन दिनों की है जब वह बेहद बुरे दौर से गुजर रहे थे। आर्थिक तंगी उन्हें घेरे हुए थीं बैंक खाता भी खाली था। धीरूभाई को जैसे ही मामले का पता चला तो उन्होंने मदद के लिए तुरंत हाथ बढ़ाया,ऐसा खुद अमिताभ बच्चन ने कहा है,उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज के 40वें स्थापना दिवस पर पूरे घटनाक्रम का वर्णन किया।
इस घटना का वर्णन करते हुए अमिताभ बच्चन की आंखे भी नम हो गयी थीं महनायक ने कहा कि एक समय वह दिवालिया हो गए थे,उनका कोई सहारा नहीं था,उनकी कंपनी घाटे में चली गई थीं ,आय के सभी स्रोत काट दिए गएथे । तब इसके बाद धीरूभाई ने अपने सबसे छोटे बेटे अनिल अंबानी को उनके पास भेजा फिर उनकी समस्या का समाधान हुआ.
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