सिंगरौली 14 नवम्बर। प्रदेश सरकार ने सितम्बर महीने में तबादला पर लगे रोक को हटाते हुए 5 अक्टूबर तक हरी झण्डी दे दिया था। इसी दौरान जिले के राजस्व, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा पुलिस महकमे में कुछ फेरबदल किया गया था। लेकिन लंबे अर्से से पदस्थ तहसील व उपखण्ड अधिकारी कार्यालय में लिपिकों का तबादला नहीं हुआ। बल्कि उनकी सूची लीक हो गयी। जिसको लेकर माननीय भी पतासाजी में लगे हुए हैं।
गौरतलब हो कि प्रदेश सरकार ने तबादला के लिए अंतिम तिथि 5 अक्टूबर मुकर्रर किया था। इस दौरान जिला प्रभारी मंत्री के अनुमोदन पश्चात सबसे ज्यादा स्वास्थ्य, शिक्षा, राजस्व अमले के पटवारियों का तबादला किया गया था। साथ ही आंशिक तौर पर पुलिस कर्मी भी इधर से उधर किये गये थे। इसके अलावा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के पंचायत सचिवों का भी स्थानांतरण किया गया। जबकि अन्य विभागों में भी फेरबदल करने की संभावनाएं थीं।
जिसमें मुख्य रूप से सहायक ग्रेड-2, 3 शामिल थे। सूत्र बता रहे हैं कि लंबे अर्से से तहसील व उपखण्ड राजस्व के दफ्तर में पदस्थ सहायक गे्रड-2,3 के कर्मचारियों का तबादला करने के लिए कई माननियों ने मिली शिकायतों के आधार पर कलेक्टर के यहां प्रस्ताव दिया था। अन्य विभागों के तबादले कर दिये गये, किन्तु लिपिकों का तबादला तो नहीं हुआ, किन्तु माननियों के द्वारा दिये गये प्रस्ताव की सूची लीक हो गयी।
सूची लीक होने के बाद कुछ माननीय भी हैरान हैं कि जब यह सूची कलेक्ट्रेट कार्यालय में दी गयी तो लीक कहां से हुई। अभी भी कुछ चर्चित लिपिक माननियों पर तबाव भी बना रहे हैं और उन्हें खुश करने के लिए रोजाना हाजिरी भी दे रहे हैं। लेकिन माननीय भी इस बात से अचंभे में हैं कि जो बात गोपनीय थी वह कैसे लीक हो गयी? साथ ही इस बात की चर्चा है कि प्रभारी मंत्री के यहां अनुमोदन के लिए तबादला सूची जिला प्रशासन के माध्यम से भेजी गयी थी,फिर तबादला क्यों नहीं हुआ? इस बात से अभी भी माननीय लोग हैरान हैं।
चर्चाएं हैं कि संभवत: कलेक्ट्रोरेट कार्यालय से ही प्रस्तावित तबादला सूची लीक हुई है। जिले के विभिन्न तहसील, उपखण्ड अधिकारी राजस्व कार्यालय में तीन साल से अधिक समय तक पदस्थ लिपिकों को हटाये जाने की मांग की जा रही थी और कईयों के खिलाफ तरह-तरह की शिकायतें भी माननियों तक पहुंची थी। शिकायत को ही आधार बनाकर चर्चित लिपिकों को हटाये जाने के लिए माननीय भी सहमति जताये हुए थे, किन्तु माननियों के मंशा पर पानी फिर गया।
चर्चित लिपिकों से ही सरकार हो रही बदनाम
तहसील व उपखण्ड कार्यालयों में लंबे अर्से से पदस्थ सहायक ग्रेड-2,3 के चलते ही सरकार की जमकर बदनामी हो रही है। आरोप लगाये जा रहे हैं कि बिना सुविधा शुल्क लिये लिपिक फाइल नहीं खोलते। फैसले की बात दूर पेशी देने में भी आना कानी करते हैं। यदि किसी कास्तकार का राजस्व दफ्तर में प्रकरण चल रहा है तो जायज कार्यों में भी भारी भरकम नजराना अदा करना पड़ता है। आरोप है कि इसके लिए लिपिकों का पेट इतना बड़ा हो जाता है कि हजार, 5 हजार नहीं बल्कि 50 हजार , 1 लाख से डेढ़ लाख तक की डिमांड करने लगते हैं। अपने पक्ष में फैसला कराने के लिए भले ही पीड़ित कथित कास्तकार कर्ज लेकर नजराना दे उनकी मजबूरियां बन जाती हैं। इसी के चलते इन दिनों प्रदेश सरकार की खूब किरकिरी हो रही है।
सरई तहसील का लिपिक चर्चाओं में
सरई में पदस्थ एक लिपिक सुर्खियो में है। आरोप लगाये जा रहे हैं कि नेताओं के मिले संरक्षण के कारण लिपिक पर कार्रवाई नहीं हो रही है। कई बार स्थानांतरित भी हुई लेकिन अचानक निरस्त कर दिया जाता है। इसकी शिकायत कई बार कलेक्टर के साथ-साथ संभागायुक्त के यहां भी की गयी। लेकिन लिपिक को हटाने के लिए जिला प्रशासन जहमत नहीं उठा रहा है। अंगद के पाव की तरह कई वर्षों से पदस्थ लिपिक की मनमानी को लेकर भाजपा नेताओं को भी कई कास्तकार कोसने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी तरह अन्य विभागों में भी लंबे अर्से से एक ही शाखा में लिपिक पदस्थ हैं।